“हम तेरे बिन् अभी रेहे नहीं सकते... तेरे बिना क्या वजूद मेरा” कृति के पसंदीदा रिंग्टोन धीमि सी गुनsss गुनाsss रही थी उसकी मोबाइल, हालाँकि गेहरी नींद के गोद में सोयी रही पर उठ नहीं पायीं थी। उस तरफ़ से लगातार कोशिश करनेवाले ने भी ‘गिव्-अप्’ नहीं करते हुवे, हाथ धो के पीछे पड़े थे इस कुंभकरण की बेहन को उठाने की ज़िद से।
भगीरथ प्रयत्न के पश्चात कृति की नींद भंग़ हो गयी और गालियोंzzz के साथ, नींद से थोड़ा होश सँभालती हुई अपनी हाथ, टेबल पे पड़ी हुई मोबाइल की ओर फैलयायी कॉल् रिसिव् करने... पर कॉल् क़ट् होगायी थी।
क्युरियोसिटी के मारे सोच में पड़ गयी “कौन हो सकते है इस वक़्त!!!???” मोबाइल लॉक् खोल के देखीं और दुविधा में पड़ गयी... बॉफ़्रेंड् सुबोध का नाम देख के अंदर ही अंदर ख़ुश भी थी, पर वीकेंड के नींद की धज्जियाँ उड़ाने के जुर्म से उस पे कफ़ा भी थी। अंजाने में काल्बैक् भी किया आदत से मजबूर होके, हमेशा की तरह।
उस तरफ़ से बेचैनी से कॉल् का इंतेज़ार करता हुआ सुबोधने दो ही रिंग में कॉल् रिसिव् किया था “गुड् मोर्निंग डार्लिंग्” बोलते हुवे। “मेरी वीकेंड् की मीठि नींद ख़राब कर्दी, अब कहाँ का गुड् मोर्निंग्। खैर, अब जल्दी जल्दी बताओ वजह क्या थी? ऐसा क्या पहाड़ टूट पड़ा था अभी भी आँखों से नींद गयी नही है मेरी” ग़ुस्से से उत्तर दिया कृति ने।
अब जो खबर मैं सुनानेवाला हूँ, वो सुनके, तेरी नींद ग़ायब भी होगी और मूड भी एकदम फ़्रेश। कृति ने कहा “पहेलियाँ मत बुझाओ. सीधा सीधा बोलो” उसने कहा “तुम कल परसो जिक्र कर रही थी ना, उफ्sss इस बारिश की वजह से हम एक महीने से कही भी पिकनिक स्पॉट नहीं गये, ऑफ़िस से घर, घर से ऑफ़िस.. वही रोज़ का रूटीन् से परिशान हो ” कल रात को चरण, अमृता और नवीन से बात करते करते, एक प्लान् रेडी किया हम लोगों ने, वही लोनावाला के नज़दीकवाला कोरिघड् फ़ोर्ट जाएँगे ऐसा।
अरे... आप लोग पहले से ही डिसाइड् करके... मुझे इतनी देर के बाद, अब बोलरहे हो। ओ.के. आप लोग हो आवों, मैं नहीं आ सक्ति... बै बै।
सुबोध ने कहा “डियर्, स्वारी, डिसाइड् करते करते इतनी रात हो गयी की मैं उस वक्त तुझे डिस्टर्ब करने को मन नहीं किया। अब ग़ुस्सा थूक दो और जल्दी से रेडी होजाओ अभी 9:00AM बजे है। जब तक तुझे ‘पिक्-अप्’ करने आवूँगा तब तक 11:00AM बज ही जाएगा, सी यू सून्”। कॉल् काट दिया था उसने, अपनी दिलरुबा की जवाब सुने बिना। उस्को भी पता था कृति की अंतरात्मा, बाहर से ग़ुस्सा और अन्दर ही अन्दर प्यार जताना।
आज पूरा दिन सुबोध के साथ वक्त बिताने को मिलेगा सोचके ही उस लड़की की मन में प्यार की लड्डू फूट रहे थे। कृति और सुबोध प्राइमरी से क्लास्मेट थे मॉडर्न इंग्लिश स्कूल में। कही कही बार एकही डिविज़न में होते होते डिविज़न बदल जाती थी, पर इस परिस्थिति दोनो की दोस्ती में रुकावट नहीं बनी। अलग डिविज़न में होंगे तो जिस कि भी क्लास पहले ख़त्म होती थी, वो दूसरे के लिए ग़ेट के पास इंतेज़ार करते रहते थे।
स्कूल ख़त्म होने के बाद रोज़ कम से कम दस मिनिट गप्पें वप्पे मार के घर लौटते थे दोनो। सुबोध को लेने उसकी माँ खुद आती थी पर कृति को लेने एक ऑटो रिक्षा रोज़ आके, उस्को पालना घर यानी ‘डे केर’ में छोड़ देती थी।
कृति की माँ बैंक ओफ़ इंडिया में क्लार्क की नौकरी करतीं थी और उसकी बाप मिलिटरी में सर्व करने की वजह से साल में दो बार, एक महीने के छुट्टी पे आते रहते थे। कभी कभार उनकी पोस्टिंग मुंबई, पुणे में भी होती थी तब वो साथ में ही रहते थे। ऐसे ही चलती रही, तब तक, जब तक कृति अपनी बारहवीं कक्षा तक पोहोंची।
कृति को अपनि पसंदीदा कम्प्यूटर साईंन्स मिला था, मुंबई के छ्त्रपति शिवाजी एंजिनीरिंग कॉलेज में और सुबोध सिविल् को एंजिनीरिंग् में। सिर्फ़ सिविल् एंजिनीरिंग् के बलबूते पर अच्छा काम हासिल नहीं कर सकते जानकर, एक साल काम करके मायूस होके फिर पी॰जी॰ सीट के लिए सी॰ई॰टी॰ अटेंड करके स्ट्रक्चरल् एंजिनीरिंग् में एम्॰टेक् करके, अच्छा तनख़्वाहवाला जॉब हासिल क़र लिया था। कृति को एंजिनीरिंग ख़त्म करने से पहले कॉलेज में कैम्पस् सिलेक्शन् होके, अपनी जो ख्वाहिश थी की “कॉलेज ख़त्म होने के बाद थोड़े दिन स्वतंत्रता से घूमने की “ वो गंगा नदी में बहती अस्थीयों की तरह ज़िंदगी से बह गयी। आख़री परीक्षा ख़त्म होते ही तीन महीनो कि ट्रेनिंग के लिए पुणे जाना पड़ा।
तब भी सुबोध हफ़्ते में एक बार तो मिलने ज़रूर जाया करता था। पी॰यू॰ तक आपस में गहरी दोस्ती होने की बावजूद दोनो ने अपनी अंदर छुपे प्यार का इझहार कभी भी एक दुजेसे नही किया था, क्यों की ड़रते थे अगर आपस में कही मिसंडर्स्टैंडिंग की वजह से उन दोनों की दोस्ती ना टूटे। मगर साथ में पढ़ते रहे अमृता, नवीन और चरण को पक्का यक़ीन था की दोस्ती के अलावा उन दोनो में कुछ तो अलग फ़ीलिंग्स् है पर आगे नहीं बढ़ रहे हैं, क्यों की अमृता और नवीन अपनि प्यार का इझहार आठवीं कक्षा में ही कर लिया था। जब भी देखो अमृता और नवीन छिपक के रहते थे, उनको देख के कृति भी सोचती थी की वो भी सुबोध के साथ वेसे ही रहे पर यह बात दिल्में दबा के रखी थी।
आगे जब एंजिनीरिंग करने लगे, तब सूबोधने ही पहले कृति को प्रपोज़् किया था, उसके बाद कृति भी धीरे धीरे दिल में जतन किया हुआ बचपन से लेके तब तक के प्यार को इझहार करते करते अपनी दिल को हल्का करते आई थी। हालाँकि दोनो के घर में प्यार की कारनामे की खबर थोड़ी पोहोंच भी चुकी थी, पर दोनो के घर में साथ घूमने फिरने के लिए कोई पाबन्दी नहीं थी।
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जैसे वादा किया था वैसे ठिक 11:00AM बजे सुबोध अपना एस॰यू॰वी॰ फ़ोर्ड इक्स्प्लॉरर् के साथ कृती के अपार्टमेंट के नीचे पार्क् करके मिस्डकॉल् देके, इंतेज़ार करते बैठ गया था।
फ़्लोरा डिज़ाइन् की लाल और नीला फूलों से जड़े, घुटनो के नीचे रहे अम्ब्रेला क़ट् स्कर्ट पहने, लाइट् मेकप् करके, हड़बड़ी में, माँ के हाथ से बने सैंड्विच खा के भागती हुई कृति को माँ शोभना ने चेतावनी दी “ पिंकी बेटा... ज़्यादा देर से मत निकलो वहाँ से, जंगल का रास्ता है ऊपर से बारिश का मौसम भी, अंधेरे में खामोखा तकलीफ़ झेलना ना पड़े” केहके सोच में पड़ गयी “फ़ोर्ट के अंदर और आस पास का इलाखा रात के वक्त ख़तरे से ख़ाली नहीं है, आत्मा और प्रेतात्मा का साया अभी भी मंड्राते रहते है जैसे लोग बोलते रहते है, पर कौन समझाए इन बच्चों को, समझाओ तो हँस पड़ेंगे मेरे ऊपर “ ये कहके “इक्कीसवी सदियोंमें भी आप इन चीजों में यक़ीन करती हो क्या???? एजुकेटेड् होने के बावजूद!!!” अक्सर कृति बोलती रहती थी अपनी हमेशा मनपसंद हाँरर मूवी देखते देखते की “भूत, प्रेत सिर्फ़ हॉररसीरीयल्स में या मूवी में देखने को मिलेंगे, हक़ीक़त में नहीं, अगर कोई यक़ीन से बोलेंगे की वो मौजूद है, तो वो मानसिकता के वेहेम का शिकार है बस"
“भगवान और भूतों में यक़ीन करनेवालों को ही वो चीज सच लगती है हैना!!!! कुछ भी हो सही सलामत बेटी वापस घर आजाए बस, इस बार प्रताप जब जबलपुर से लौटेंगे, इस बार छुट्टियों में दोनो का प्यार का खबर सुनाके, जल्द से जल्द ब्याह रचाएँगे। अभी बेटी की उम्र सत्ताईस चल रही है... इस उम्र में, मेरे हाथ पीले होके, पाँच साल बीत चुकि थी। कृति भी पैदा होगायी थी” ऐसा सोच में पड़ गयी शोभना हक़ीक़त में आयी थी कृति की आवाज़ सुनके “बाई मम्मी”. हड़बड़ी में लिफ़्ट की तरफ़ भागी थी वो..।
To be continued
लेखिका: प्रेरणा प्रवीणकुमार कुलकार्णि🌹
अनुवाद: प्रवीणकुमार कुलकार्णि (कन्नड़ से हिंदी)